दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के जालंधर स्थित आश्रम मे सतसंग समागम का
आयोजन किया गया जिसमे प्रवचन करते हुए साध्वी नीतिविदा भारती ने कहा
कि समाज मानव मन की अ िभव्यक्ति है। जब-जब संतों के आरदर्शों का
परित्याग हुए मानव भोग वासना की ओर प्रवृत हुआ तब-तब समाज रूपी यमुना
विषाक्त होती गई। जरूरत मन को प्रदूषण मुक्त करने की है। जब मन का प्रदूषण
समाप्त होगा तब बाहरी पर्यावरण स्वत: ही स्वच्छ हो जाएगा । अगर मन को
प्रदूषण मुक्त करना है तो जरूरत है ब्रहमज्ञान की। ब्रहमज्ञान मानसिक शांति का
सशक्त साधन है।आज हम उस वातावरण मे जी रहे है जहाँ सच्चाई का स्थान
अवैधता या अराजकता ने ले लिया है,ईमानदारी नैतिकता का पालन करने वाले
लोगों को धोखेबाजों के साथ निर्वाह करना पड़ता है। ऐसे मे दृढ़ इच्छा शक्ति
की जरूरत होती है और यह तभी संभव होगा जब हम अपने जीवन मे अध्यातम
को आत्मसात कर लेंगें। अध्यातम हमारे नकारात्मक विचारों को सकारात्मक
बनाता है।इससे हमारे मन को शांति मिलती है और हम ईशवर से जुड़ते है। यदि
हमे एक स्वच्छ एवं सुन्दर समाज का निर्माण करना है तो भारतीय संस्कृति को
पुर्नजीवित करना होगा और उसे सक्रिय रूप से लागू करना होगा। अध्यातम का
अभयास हमारे मन को सत्य और शुद्वि की और मोड़ता है। अध्यातम सांसारिक
दुखों और पीड़ाओं से जूझने मे हमारी मदद करता है। जीवन मे आध्यात्मिकता
को अपनाने का सबसे उतम तरीका ब्रहमज्ञान की ध्यान साधना है। सच्ची साधना
यानि पूर्ण गुरू द्वारा दिया गया ब्रहमज्ञान है और सच्ची आध्यात्मिकता का स्पर्श
हमारे ह्रृदय और मन से अज्ञान के रोग को दूर कर देता है। हमारी जिंदगी को
शांत र्निमल और आनंदमय बना डालता है। कार्यक्रम के दौरान साध्वी रणे भारती
जी ने सुन्दर भजनों का गायन कर उपस्थित जन समूह को भाव विभोर कर दिया।
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